अब वसुंधरा का क्या होगा राजनीतिक भविष्य?:8 महीने पहले ही मिल गए थे संकेत- CM नहीं बनेंगी, 4 सियासी घटनाक्रम से समझिए
राजस्थान भाजपा में मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही कयासबाज़ियों के सारे पैमाने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के फ़ैसलों ने उलट दिए हैं.
भाजपा हाईकमान के इन फ़ैसलों ने विधायक चुने जाने तक की आकांक्षाओं के आगे सपने में भी न सोच पाने वाले चेहरों के दिलों में सियासी हुस्न के अक्स छलका दिए हैं.
किसी ने सियासी सिंगारदान तो किसी ने आँखों की पलकों पर दिवास्वप्न के दर्पण सजा लिये हैं.
ऐसे विधायक जो गुलाबी नगरी में पहली बार निर्वाचित होकर आने के बाद गुम होने का अहसास करते थे, अब उन्हें लगता है कि इस जगह से तो सीधा मुख्यमंत्री पद के लिए शपथग्रण का रास्ता निकलता है.
ख़ासकर ऐसे समय जब छत्तीसगढ़ में एक आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री बनाया गया है और मध्य प्रदेश में महज तीसरी बार के विधायक को महज़ दस साल के विधायी सफ़र में सबसे बड़ा पद सौंप दिया गया है.
राजस्थान के नव-विर्चाचित विधायक हों या संगठन से जुड़े लोग, स्कूल-कॉलेज या विश्वविद्यालयों के परिसर हों या व्यापारिक संगठनों के गप्पबाज़ी वाले अड्डे, कॉफ़ी शॉप्स हों या सियासी गलियारे, हर जगह तरह-तरह के क़िस्से तैर रहे हैं और उनके माध्यम से राजस्थान के हालात को जानना एक अलग नज़रिया मिलता है.
देखते-देखते हैरान कर देने वाले नज़ारे दिखते हैं.
एक विधायक के मुरीद के फोन पर कॉल आती है. वह पूछता है कि कल किसे शपथ दिलवा रहे हैं. विधायक जवाब देते हैं, तू पूछ मत. ज़मीन पर पांव ही नहीं पड़ रहे. उस समय वाक़ई उनका फोन और हाथ कांप रहा है.
वे कहते हैं, मैं भी तो ...हूँ, मैं भी तो ...हूँ और मैं भी तो ...हूँ! तो बता मैं क्यों नहीं शपथ ले सकता. मोहन यादव को भी तो कहाँ पता था कि उसका नंबर आ रहा है!
भाजपा हाईकमान के ताज़ा फ़ैसलों ने विधायकों के दिलों की हालत वो कर दी है कि इस सियासत में बारिश वो बरसती है कि भर जाते हैं जल-थल, देखो तो कहीं अब्र का टुकड़ा नहीं होता.
आइए, बीजेपी ऑफ़िस और विधायकों के ठिकानों के आसपास टहलते हैं.
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