Animal Review: 'अल्फा मेल' का Pro वर्जन बने रणबीर कपूर, कहानी में गड़बड़
Animal Movie Review: ‘कबीर सिंह’ और ‘अर्जुन रेड्डी’ की सफलता के बाद निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा का ‘अल्फा मेल को महिमामंडित’ करने वाला फॉर्म्यूला पूरे देश में सुपरहिट हो गया. ऐसे में संदीप फिर से इसी ‘मर्दों की दुनिया’ वाले अंदाज में अब रणबीर कपूर को लेकर आए हैं, बहुत ज्यादा वॉयलेंस और ढेर सारे खून-खराबे के साथ. ‘कबीर सिंह’ जहां अपनी प्रीति के लिए दीवाना था, वहीं अब ‘एनीमल’ में एक बेटा अपने पिता के लिए दीवाना है. अब इस दीवानेपन में हमारी फिल्म का हीरो कुछ भी कर सकता है और संदीप इसी एक्सट्रीम सिनेमा को पर्दे पर दिखाते हैं. फिल्म के ट्रेलर के बाद इस फिल्म को लेकर लोगों में जबरदस्त उत्साह है और ये एक्साइटमेंट इस फिल्म की पहले दिन की एडवांस बुकिंग से साफ पता चलता है. जितना एक्साइटमेंट लोगों में इस फिल्म को लेकर है, क्या संदीप रेड्डी वांगा साढ़े तीन घंटे की इस फिल्म में उतनी ही मजेदार कहानी लेकर आए हैं? आइए आपको बताते हैं.
पापा का दीवाना रनविजय
जैसा की ट्रेलर से ही साफ है कि ये कहानी रनविजय बलवीर सिंह (रणबीर कपूर) के अपने पिता बलवीर सिंह (अनिल कपूर) के लिए दीवानेपन की कहानी है. बलवीर सिंह दिल्ली का एक बहुत ही बड़ा बिजनेस टाइकून है, जिसकी स्टील की फैक्ट्री है, स्वास्तिक स्टील. बलवीर सिंह इतना बड़ा बिजनेसमैन है कि उसके अपने खुद के प्राइवेट लैंड, प्राइवेट होटल, घर, बंगले सब कुछ है. इसी बलवीर सिंह के तीन बच्चे हैं 2 बहने और एक बेटा रनविजय सिंह. रनविजय जो अमेरिका में रहता है, उसे अचानक पता चलता है कि उसके पिता पर किसी ने गोली चलाई है, जिसके बाद वो अपना परिवार लेकर वापस अपने पिता के पास आ जाता है और फिर ढूंढने निकलता है अपने पिता पर हमला करने वाले इस हमलावर को. इसी बदले की कहानी है ये फिल्म.
अल्फा मर्दों की कहानी
फिल्म का फर्स्ट हाफ ये बताने में लगा है कि रणबीर अपने पिता को लेकर किस हद तक दीवाने हैं. इसके साथ ही शुरुआत में ही रणबीर और रश्मिका की लव स्टोरी को दिखा दिया गया है, हालांकि इसमें ज्यादा समय बर्बाद नहीं किया गया है. इसी लव स्टोरी के दौरान रणबीर ये भी एक्सप्लेन कर देते हैं कि कैसे औरतों को सदियों से बस ‘अल्फा मर्दों’ ही पसंद आते हैं क्योंकि वो स्ट्रॉन्ग होते हैं. अब इस तरह के विचारों पर अलग से बात की जा सकती है, पर अभी हम इस फिल्म के वैचारिक पक्ष पर नहीं, सिर्फ क्राफ्ट पर ही बात करते हैं (क्योंकि उस स्तर पर ये फिल्म काफी प्रॉब्लमेटिक है). फिल्म के फर्स्ट हाफ में कई ऐसे सीन हैं जो काफी मजेदार हैं. खासकर एक्शनसीन्स को बड़ी खूबसूरती से डिजाइन किया गया है.
सेकंड हाफ में अक्सर फिल्मों की ढीली कहानी से भी फास्ट पेस हो जाने की उम्मीद की जाती है, लेकिन ‘एनीमल’ का सेंकड हाफ भी आपके धैर्य की पूरी परीक्षा लेता है. सीन-सीन जोड़कर फिल्म बनती है, लेकिन सिर्फ सीन-सीन जोड़कर ही फिल्म नहीं बनती. इन सीन्स के बीच एक कहानी बहती है, जो दर्शकों को बांधे रखती है. लेकिन ‘एनीमन’ इसी जोड़ में पीछे रह गई है. ट्रेलर में ही आपको पता है कि अनिल कपूर को गोली लगने वाली है. ऐसे में उम्मीद की जाती है कि फिल्म में पता चलेगा कि आखिर ये किसने किया और क्यों…? अब इन 2 सवालों का जवाब देने के लिए 3 घंटा 21 मिनट बहुत लंबा समय है. फिल्म इतनी लंबी है कि थकावट होने लगती है.
सेकंड हाफ में एक्ट्रेस त्रिपती डीमरी का पूरा सीक्वेंस इतना अजीब और बोरिंग लगता है कि उसकी कहानी में कोई जरूरत ही नहीं लगती. रणबीर कपूर का जो दुश्मन उसके बचपन से लेकर अमेरिका तक की सारी जानकारी निकाल लेता है, वो ये नहीं पता कर पाता कि रणबीर उसे मारने स्कॉटलेंड आ रहा है… और हां, संदीप रेड्डी वांगा की रची इस पूरी दुनिया में न तो पुलिस है और न प्रशासन, तो लॉजिक कहीं भी कहानी में होगा तो भूल जाइए.
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