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Sunday, 22 December 2024
Ganapath Review: टाइगर श्रॉफ-कृति सेनन बढ़‍िया, पर जोड़ नहीं पाई कहानी...

Ganapath Review: टाइगर श्रॉफ-कृति सेनन बढ़‍िया, पर जोड़ नहीं पाई कहानी...

Ganapath Movie Review: टाइगर श्रॉफ और कृति सेनन ‘हीरोप‍ंति’ के बाद एक बार फिर ‘गणप‍त’ के जरिए साथ आए हैं. इस बीच कृति सेनन नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली एक्‍ट्रेस बन चुकी हैं, वहीं टाइगर भी एक्‍ट‍िंग के स्‍कूल में ‘स्‍टूडेंट’ बन शायद काफी कुछ सीख चुके हैं. ‘गणपत’ से उम्‍मीदें बढ़ भी इसल‍िए जाती हैं, क्‍योंकि इस फिल्‍म के न‍िर्देशन की कमान ‘क्‍वीन’, ‘च‍िल्‍लर पार्टी’ और ‘सुपर 30’ जैसी बढ़‍िया फिल्‍में बना चुके डायरेक्‍टर व‍िकास बहल ने संभाली है. देख‍िए टाइगर श्रॉफ हैं, तो ये तय है कि फिल्‍म में एक्‍शन की ओवरडोज तो होगी. लेकिन क्‍या ये फिल्‍म कृति सेनन, अम‍िताभ बच्‍चन जैसे एक्‍टरों के ल‍िए भी कुछ कर पाई है? क्‍या इस फिल्‍म को भी आपको यही कहकर बेचा जाएगा कि ‘द‍िमाग घर पर रखकर जाएं, तो मजा आएगा…? आइए बताती हूं कैसी है ये फिल्‍म.

 

क्‍या कहती है कहानी
सबसे पहले समझ लें कि इस फिल्‍म की कहानी क्‍या है. विकास बहल की ये फिल्‍म डायस्टोपियन एक्शन फिल्म है, जो एक काल्‍पन‍िक समय की कहानी को पर्दे पर उतारती है. इस फिल्‍म में ये काल्‍पनिक समय है युद्ध के बाद बर्बाद हो चुकी दुनिया का. कहानी शुरू होती है दलपति (अमिताभ बच्चन) से. युद्ध के बाद पूरी तरह बर्बाद हो चुकी दुनिया 2 हिस्‍सों में बंट गई है. एक है अमीरों की दुनिया यानी ‘स‍िल्‍वर स‍िटी’, जहां गरीबों के ल‍िए कोई जगह नहीं है. वहीं अमीरों की दुनिया से इतर ये गरीब हर जरूरत की चीज के ल‍िए आपस में लड़ते हैं. लेकिन दलपति उन्‍हें लड़ाई के ल‍िए एक जगह देता है, जो है बॉक्‍स‍िंग र‍िंग. लेकिन स‍िल्‍वर स‍िटी का दाल‍िनी गरीबों के इस हालात में भी ब‍िजनेस देखता है और उन्‍हें स‍िल्‍वर स‍िटी में ले जाता है. इस बॉक्‍स‍िंग पर वह बेट‍िंग लगाकर पैसा कमाता है. स‍िल्‍वर स‍िटी और गरीबों की इसी दुनिया के खाई जैसे अंतर को पाटने का काम करेगा गुड्डू (टाइगर श्रॉफ) जो आगे जाकर ‘गणप‍त’ बन जाता है. इस पूरे काम में जस्‍सी (कृति सेनन) उसका पूरा साथ देती है.

भारत की कहानी में चाइनीज
डायस्‍टोप‍ियन अंदाज की इंड‍ियन कहान‍ियां वेब सीरीज स्‍तर पर कई आ चुकी हैं, जैसे नेटफ्लि‍क्‍स की वेब सीरीज ‘लैला’ और अरशद वारसी स्‍टारर वेब सीरीज ‘असुर’ ऐसी ही भव‍िष्‍य की दुन‍िया को द‍िखा चुकी है. लेक‍िन फिल्‍मी पर्दे पर ये कोश‍िश नई है. इस कोश‍िश के ल‍िए इस फ‍िल्‍म की तारीफ होनी चाहिए. हालांकि इसका ट्रीटमेंट उस मजेदार या बढ़‍िया तरीके से नहीं हो पाया है, जैसा क‍िया जा सकता था. कहानी में कई चीजें कन्‍फ्यूज करने वाली हैं. व‍िकास बहल ने इस डायस्टोपियन फिल्म के जरिए एक काल्‍पनिक लोक की कहानी द‍िखाई है, लेकिन ये कल्‍पनाएं थोड़ी और बेहतर हो सकती थीं.

डायस्टोपियन स‍िनेमा की पहली शर्त है कि आप दर्शकों को भरोसा द‍िलाएं कि आप जो दुन‍िया द‍िखा रहे हैं वो सच्‍ची और लॉज‍िकल है, तभी आपकी कहानी पर भरोसा होगा.  ‘गणपत’ ये कोश‍िश करती नजर आती है. व‍िकास एक बढ़‍िया न‍िर्देशक हैं, जि‍नसे एक बढ़‍िया फिल्‍म की उम्‍मीद थी. गणपत में फर्स्‍ट हाफ में ये कोश‍िश जारी रहती है,  लेकिन लगता है सेकंड हाफ में वो भी टाइगर के एक्‍शन वाले अंदाज की हवा में बह गए हैं. दूसरा इस कहानी में सब कुछ Chess गेम की तरह है, काला या सफेद. अमीर मतलब बहुत बुरा, गरीब मतलब बहुत अच्‍छा. ऐसे में कहानी की पर्तें हैं ही नहीं. हालांकि इंटरवेल एक बढ़‍िया ट्व‍िस्‍ट पर होता है, लेकिन सेकंड हाफ में उसे संभाला नहीं गया.

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